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Writer's pictureAnant Katyayni

दिल्ली की सर्दी

अजीब कशमकश है ये दिल्ली की सर्द भी ठण्डे दिल और आबोहवा, पर माहौल गर्म भी पथरा चुके इन दिलों में कुछ गर्माहट जगाने को ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता सियासतदानों के सस्ते फुसलावे में लड रहे वतनपरस्त दोस्त मेरे सब बदजुबानी की छांव से इन्हें बाहर लाने को ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता जाहिलियत के अंधेरे मौहल्लों में हिंदू मुसलमान की तंग गलियों से एक अदद इंसान ढूंढ पाने को ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता हड्डियां गलाने वाली रात के बाद सुर्ख गुलाबी सूरज के दीदार में एक अदरक चाय का प्याला पिलाने को ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता


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