अजीब कशमकश है ये दिल्ली की सर्द भी
ठण्डे दिल और आबोहवा, पर माहौल गर्म भी
पथरा चुके इन दिलों में कुछ गर्माहट जगाने को
ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता
सियासतदानों के सस्ते फुसलावे में
लड रहे वतनपरस्त दोस्त मेरे सब
बदजुबानी की छांव से इन्हें बाहर लाने को
ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता
जाहिलियत के अंधेरे मौहल्लों में
हिंदू मुसलमान की तंग गलियों से
एक अदद इंसान ढूंढ पाने को
ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता
हड्डियां गलाने वाली रात के बाद
सुर्ख गुलाबी सूरज के दीदार में
एक अदरक चाय का प्याला पिलाने को
ऐ धूप, तू होती तो अच्छा होता
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